कालसपर योग
कालसपर एक ऐसा योग है जो जातक के पूवर जनम के िकसी जघनय अपराध के दंड या शाप के फलसवरप उसकी जनमकंु डली मे पिरलिकत होता है। वयावहािरक रप से पीिडत वयिक आिथर क व शारीिरक रप से परेशान तो होता ही है, मुखय रप से उसे संतान संबध ं ी कष होता है। या तो उसे संतान होती ही नही, या होती है तो वह बहु त ही दबु र ल व रोगी होती है। उसकी रोजी-रोटी का जुगाड भी बडी मुिशकल से हो पाता है। धनाढय घर मे पैदा होने के बावजूद िकसी न िकसी वजह से उसे अपतयािशत रप से आिथर क कित होती रहती है। तरह तरह के रोग भी उसे परेशान िकये रहते है।
जनमकू णडली से खोज
जब जनम कंु डली मे सारे गह राहु और केतु के बीच अविसथत रहते है तो उससे जयोितष िवदा ममर ज वयिक यह फलादेश आसानी से िनकाल लेते है िक संबंिधत जातक पर आने वाली उक पकार की परेशािनयां कालसपर योग की वजह से हो रही है। परंतु याद रहे, कालसपर योग वाले सभी जातको पर इस योग का समान पभाव नही पडता। िकस भाव मे कौन सी रािश अविसथत है और उसमे कौन-कौन गह कहां बैठे है और उनका बलाबल िकतना है - इन सब बातो का भी संबंिधाात जातक पर भरपूर असर पडता है। इसिलए माता कालसपर योग सुनकर भयभीत हो जाने की जररत नही बिलक उसका जयोितषीय िवशलेषण करवाकर उसके पभावो की िवसतृत जानकारी हािसल कर लेना ही बुिधदमता कही जायेगी। जब असली कारण जयोितषीय िवशलेषण से सपष हो जाये तो ततकाल उसका उपाय करना चािहए। नीचे कुछ जयोितषीय िसथितयां दी गयी है िजनमे कालसपर योग बडी तीवता से संबंिधत जातक को परेशान िकया करता है।
िसथितयां • •
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जब राहु के साथ चंदमा लग मे हो और जातक को बात-बात मे भम की िबमारी सताती रहती हो, या उसे हमेशा लगता है िक कोई उसे नुकसान पहु च ं ा सकता है या वह वयिक मानिसक तौर पर पीिडत रहता है। जब लग मे मेष, वृिशचक, ककर या धनु रािश हो और उसमे बृहसपित व मंगल िसथत हो, राहु की िसथित पंचम भाव मे हो तथा वह मंगल या बुध से युक या दष हो, अथवा राहु पंचम भाव मे िसथत हो तो संबंिधत जातक की संतान पर कभी न कभी भारी मुसीबत आती ही है, अथवा जातक िकसी बडे संकट या आपरािधक मामले मे फंस जाता है। जब कालसपर योग मे राहु के साथ शुक की युित हो तो जातक को संतान संबंधी गह बाधा होती है। जब लग व लगेश पीिडत हो, तब भी जातक शारीिरक व मानिसक रप से परेशान रहता है। चंदमा से िदतीय व दादश भाव मे कोई गह न हो। यानी केदुम योग हो और चंदमा या लग से केद मे कोई गह न हो तो जातक को मुखय रप से आिथर क परेशानी होती है। जब राहु के साथ बृहसपित की युित हो तब जातक को तरह-तरह के अिनषो का सामना करना पडता है। जब राहु की मंगल से युित यानी अंगारक योग हो तब संबंिधत जातक को भारी कष का सामना करना पडता है। जब राहु के साथ सूयर या चंदमा की युित हो तब भी जातक पर पितकूल पभाव पडता है, शारीिरक व आिथर क परेशािनयां बढती है। जब राहु के साथ शिन की युित यानी नंद योग हो तब भी जातक के सवासथय व संतान पर पितकूल पभाव पडता है, उसकी कारोबारी परेशािनयां बढती है। जब राहु की बुध से युित अथारत जडतव योग हो तब भी जातक पर पितकूल पभाव पडता है, उसकी आिथर क व सामािजक परेशािनयां बढती है। जब अषम भाव मे राहु पर मंगल, शिन या सूयर की दिष हो तब जातक के िववाह मे िवघन, या देरी होती है। यिद जनम कंु डली मे शिन चतुथर भाव मे और राहु बारहवे भाव मे िसथत हो तो संबंिधत जातक बहु त बडा धूतर व कपटी होता है। इसकी वजह से उसे बहु त बडी िवपिताा मे भी फंसना पड जाता है। जब लग मे राहु -चंद हो तथा पंचम, नवम या दादश भाव मे मंगल या शिन अविसथत हो तब जातक की िदमागी हालत ठीक नही रहती। उसे पेत-िपशाच बाधा से भी पीिडत होना पड सकता है। जब दशम भाव का नवांशेश मंगल/राहु या शिन से युित करे तब संबंिधत जातक को हमेशा अिग से भय रहता है और अिग से सावधान भी रहना चािहए। जब दशम भाव का नवांश सवामी राहु या केतु से युक हो तब संबंिधत जातक मरणांतक कष पाने की पबल आशंका बनी रहती है।
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जब राहु व मंगल के बीच षडाषक संबध ं हो तब संबंिधाात जातक को बहु त कष होता है। वैसी िसथित मे तो कष और भी बढ जाते है जब राहु मंगल से दष हो। जब लग मेष, वृष या ककर हो तथा राहु की िसथित 1 ए 3 ए 4 ए 5 ए 6 ए 7 ए 8 ए 11 या 12 वे भाव मे हो। तब उस िसथित मे जातक सी, पुत, धन-धानय व अचछे सवासथय का सुख पाप करता है। जब राहु छठे भाव मे अविसथत हो तथा बृहसपित केद मे हो तब जातक का जीवन खुशहाल वयतीत होता है। जब राहु व चंदमा की युित केद (1 ए 4 ए 7 ए 10 वे भाव) या ितकोण मे हो तब जातक के जीवन मे सुख-समृिधद की सारी सुिवधाएं उपलबध हो जाती है। जब शुक दस ू रे या 12 वे भाव मे अविसथत हो तब जातक को अनुकूल फल पाप होते है। जब बुधािदतय योग हो और बुध असत न हो तब जातक को अनुकूल फल पाप होते है। जब लग व लगेश सूयर व चंद कंु डली मे बलवान हो साथ ही िकसी शुभ भाव मे अविसथत हो और शुभ गहो दारा देखे जा रहे हो। तब कालसपर योग की पितकूलता कम हो जाती है। जब दशम भाव मे मंगल बली हो तथा िकसी अशुभ भाव से युक या दष न हो। तब संबंिधत जातक पर पितकूल पभाव नही पडता। जब शुक से मालवय योग बनता हो, यानी शुक अपनीरािश मे या उचच रािश मे केद मे अविसथत हो और िकसी अशुभ गह से युक अथवा दष न हो रहा हो। तब कालसपर योग का िवपरत असर काफी कम हो जाता है। जब शिन अपनी रािश या अपनी उचच रािश मे केद मे अविसथत हो तथा िकसी अशुभ गह से युक या दष न हो। तब काल सपर योग का असर काफी कम हो जाता है। जब मंगल की युित चंदमा से केद मे अपनी रािश या उचच रािश मे हो, अथवा अशुभ गहो से युक या दष न हो। तब कालसपर योग की सारी परेशािनयां कम हो जाती है। जब राहु अदशय भावो मे िसथत हो तथा दस ू रे गह दशय भावो मे िसथत हो तब संबंिधत जातक का कालसपर योग समृिधददायक होता है। जब राहु छठे भाव मे तथा बृहसपित केद या दशम भाव मे अविसथत हो तब जातक के जीवन मे धन-धानय की जरा भी कमी महसूस नही होती।
कालसपर योग बुर ा ही नही
उक लकणो का उलेख इस दिष से िकया गया है तािक सामानय पाठको को कालसपर योग के बुरे पभावो की पयारप जानकारी हािसल हो सके। िकंतु ऐसा नही है िक कालसपर योग सभी जातको के िलए बुरा ही होता है। िविवध लगो व रािशयो मे अविसथत गह जनम-कंु डली के िकस भाव मे है, इसके आधार पर ही कोई अंितम िनणर य िकया जा सकता है। कालसपर योग वाले बहु त से ऐसे वयिक हो चुके है, जो अनेक किठनाइयो को झेलते हु ए भी ऊंचे पदो पर पहु च ं े। िजनमे भारत के पथम पधााानमंती सव. पं. जवाहर लाल नेहर का नाम िलया जा सकता है। सव. मोरारजी भाई देसाई व शी चंदशेखर िसंह भी कालसपर आिद योग से गिसत थे। िकंतु वे भी भारत के पधानमंतााी पद को सुशोिभत कर चुके है। अत: िकसी भी िसथित मे वयिक को मायूस नही होना चािहए और उसे अपने कतर वयो का पालन करते हु ए हमेशा अपने चहु म ं ुखी पगित के िलए सतत सचेष रहना चािहए। यिद कालसपर योग का पभाव िकसी जातक के िलए अिनषकारी हो तो उसे दरू करने के उपाय भी िकये जा सकते है। हमारे पाचीन गंथो मे ऐसे कई उपायो का उलेख है, िजनके माधयम से हर पकार की गह-बाधाएं व पूवरकृत अशुभ कमो ं का पायिशचत िकया जा सकता है। यह एक जयोितिषय िवशलेषण था पुन: आपको याद िदलाना चाहता हू ँ िक हमे अपने जीवन मे िमलने वाले सारे अचछे या बुरे फल अपने िनजकृत कमो के आधार पर है, इसिलए गहो को दोष न दे और कमर सुधारे और िताासूितय नूसखा अपने जीवन मे अपनाये और मेरे बताये गए उपायो को अपने जीवन ममे पयोग मे लाये आपके कष जरर समाप होगे; ितसूितय नुसखा: िन:सवाथर भाव से माता-िपता की सेवा, पित-पतनी का धमारनुकूल आचरण, देश के पित समपर ण और वफादारी। यह उपाय अपनाते हु ए माता इककीस शिनवार और इककीस मंगलवार िकसी शिन मंिदर मे आकर िनयिमत शी शिन पूजन, शी शिन तैलािभषेक व शी शिनदेव के दशर न करेगे तो आपके कष अवशय ही समाप होगे। आपके जनम कंु डली मे कालसपर योग है या नही? घबराये नही, आप समय लेकर िकसी योगय पंिदत से से िमले.
कालसपर योग के पकार
कालसपर योग के पमुख भेद कालसपर योग मुखयत: बारह पकार के माने गये है। आगे सभी भेदो को उदाहरण कंु डली पसतुत करते हु ए समझाने का पयास िकया गया है 1. अननत कालसपर योग
जब जनमकंु डली मे राहु लग मे व केतु सपम मे हो और उस बीच सारे गह हो तो अननत नामक कालसपर योग बनता है। ऐसे जातको के वयिकतव िनमारण मे किठन पिरशम की जररत पडती है। उसके िवदाजर न व वयवसाय के काम बहु त सामानय ढंग से चलते है और इन केतो मे थोडा भी आगे बढने के िलए जातक को किठन संघषर करना पडता है। मानिसक पीडा कभीकभी उसे घर- गृहसथी छोडकर वैरागी जीवन अपनाने के िलए भी उकसाया करती है। लाटरी, शेयर व सूद के वयवसाय मे ऐसे जातको की िवशेष रिच रहती है िकंतु उसमे भी इनहेजयादा हािन ही होती है। शारीिरक रप से उसे अनेक वयािधयो का सामना करना पडता है। उसकी आिथर क िसथित बहु त ही डावाडोल रहती है। फलसवरप उसकी मानिसक वयगता उसके वैवािहक जीवन मे भी जहर घोलने लगती है। जातक को माता-िपता के सनेह व संपिताा से भी वंिचत रहना पडता है। उसके िनकट संबंधी भी नुकसान पहु ंचाने से बाज नही आते। कई पकार के षडयंतो व मुकदमो मे फंसे ऐसे जातक की सामािजक पितषा भी घटती रहती है। उसे बार-बार अपमािनत होना पडता है। लेिकन पितकूलताओं के बावजूद जातक के जीवन मे एक ऐसा समय अवशय आता है जब चमतकािरक ढंग से उसके सभी कष दरू हो जाते है। वह चमतकार िकसी कोिशश से नही, अचानक घिटत होता है। समपूणर समसयाओं के बाद भी जररत पडने पर िकसी चीज की इनहे कमी नही रहती है। यह िकसी का बुरा नही करते है। जो जातक इस योग से जयादा परेशानी महसूस करते है। उनहे िनमनिलिखत उपाय कर लाभ उठाना चािहए। अनुकूलन के उपाय • िवदाथीजन सरसवती जी के बीज मंतो का एक वषर तक जाप करे और िविधवत उपासना करे। • देवदार, सरसो तथा लोहवान को उबालकर उस पानी से सवा महीने तक सनान करे। • शुभ मुहूतर मे बहते पानी मे कोयला तीन बार पवािहत करे। • हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करे। • महािमतयुनजय मनत का जाप कने से िभ अननत काल सपर दोश का शािनत होता है । • िगहमे मयुर पानगख रखेन । 2. कु िलक कालसपर योग राहु दस ू रे घर मे हो और केतु अषम सथान मे हो और सभी गह इन दोनो गहो के बीच मे हो तो कुिलक नाम कालसपर योग होगा। जातक को अपयश का भी भागी बनना पडता है। इस योग की वजह से जातक की पढाई-िलखाई सामानय गित से चलती है और उसका वैवािहक जीवन भी सामानय रहता है। परंतु आिथर क परेशािनयााे की वजह से उसके वैवािहक जीवन मे भी जहर घुल जाता है। िमतो दारा धााोखा, संतान सुख मे बाधा और वयवसाय मे संघषर कभी उसका पीछा नही छोडते। जातक का सवभाव भी िवकृत हो जाता है। मानिसक असंतुलन और शारीिरक वयािधयां झेलते-झेलते वह समय से पहले ही बूढा हो जाता है। उसके उतसाह व पराकम मे िनरंतर िगरावट आती जाती है। उसका किठन पिरशमी सवभाव उसे सफलता के िशखर पर भी पहु ंचा देता है। परंतु इस फल को वह पूणरतय: सुखपूवरक भोग नही पाता है। ऐसे जातको को इस योग की वजह से होने वाली परेशािनयो को दरू करने के िलए िनमनिलिखत उपायो का अवलंबन लेना चािहए। अनुकूलन के उपाय • िवदाथीजन सरसवती जी के बीज मंतो का एक वषर तक जाप करे और िविधवत उपासना करे। • देवदार, सरसो तथा लोहवान को उबालकर उस पानी से सवा महीने तक सनान करे। • शुभ मुहूतर मे बहते पानी मे कोयला तीन बार पवािहत करे। • हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करे। • शावण मास मे 30 िदनो तक महादेव का अिभषेक करे। • शिनवार औ मंगलवार का वत रखे और शिन मंिदर मे जाकर भगवान शिनदेव कर पूजन करे व तैलािभषेक करे, इससे तुरत ं कायर सफलता पाप होती है। • राहु की दशा आने पर पितिदन एक माला राहु मंता का जाप करे और जब जाप की संखया 18 हजार हो जाये तो राहु की मुखय सिमधा दवु ार से पूणारहुित हवन कराएं और िकसी गरीब को उडद व नीले वसा का दान करे 3. वासुक ी कालसपर योग राहु तीसरे घर मे और केतु नवम सथान मे और इस बीच सारे गह गिसत हो तो वासुकी नामक कालसपर योग बनता है। वह भाई-बहनो से भी परेशान रहता है। अनय पािरवािरक सदसयो से भी आपसी खीचतान बनी रहती है। िरशतेदार एवं िमतगण उसे पाय: धााोखा देते रहते है। घर मे सुख-शांित का अभाव रहता है। जातक को समय-समय पर वयािध गिसत करती
रहती है िजसमे अिधक धान खचर हो जाने के कारण उसकी आिथर क िसथित भी असामानय हो जाती है। अथोपाजर न के िलए जातक को िवशेष संघषर करना पडता है, िफर भी उसमे सफलता संिदगधा रहती है। चंदमा के पीिडत होने के कारण उसका जीवन मानिसक रप से उिदग रहता है। इस योग के कारण जातक को कानूनी मामलो मे िवशेष रप से नुकसान उठाना पडता है। राजयपक से पितकूलता रहती है। जातक को नौकरी या वयवसाय आिद के केता मे िनलमबन या नुकसान उठाना पडता है। यिद जातक अपने जनम सथान से दरू जाकर कायर करे तो अिधक सफलता िमलती है। लेिकन सब कुछ होने के बाद भी जातक अपने जीवन मे बहु त सफलता पाप करता है। िवलमब से उताम भागय का िनमारण भी होता है और शुभ कायर समपादन हेतु उसे कई अवसर पाप होते है। अनुकूलन के उपाय • नव नाग सतोता का एक वषर तक पितिदन पाठ करे। • पतयेक बुधवार को काले वसो मे उडद या मूग ं एक मुटी डालकर, राहु का मंता जप कर िभकाटन करने वाले को दे दे। यिद दान लेने वाला कोई नही िमले तो बहते पानी मे उस अन हो पवािहत करे। 72 बुधवार तक करने से अवशय लाभ िमलता है। • महामृतयुंजय मंतो का जाप पितिदन 11 माला रोज करे, जब तक राहु केतु की दशा-अंतरदशा रहे और हर शिनवार को शी शिनदेव का तैलािभषेक करे और मंगलवार को हनुमान जी को चौला चढाये। • िकसी शुभ मुहूतर मे नाग पाश यंता को अिभमंितत कर धारण करे। 4. शं ख पाल कालसपर योग राहु चौथे सथान मे और केतु दशम सथान मे हो इसके बीच सारे गह हो तो शंखपाल नामक कालसपर योग बनता है। इससे घर-दार, जमीन-जायदाद व चल- अचल संपिताा संबंधााी थोडी बहु त किठनाइयां आती है और उससे जातक को कभीकभी बेवजह िचंता घेर लेती है तथा िवदा पािप मे भी उसे आं िशक रप से तकलीफ उठानी पडती है। जातक को माता से कोई, न कोई िकसी न िकसी समय आं िशक रप मे तकलीफ िमलती है। सवारी एवं नौकरो की वजह से भी कोई न कोई कष होता ही रहता है। इसमे उनहे कुछ नुकसान भी उठाना पडता है। जातक का वैवािहक जीवन सामानय होते हु ए भी वह कभी-कभी तनावगसत हो जाता है। चंदमा के पीिडत होने के कारण जातक समय-समय पर मानिसक संतुलन खोया रहता है। कायर के केता मे भी अनेक िवघन आते है। पर वे सब िवघन कालानतर मे सवत: नष हो जाते है। बहु त सारे कामो को एक साथ करने के कारण जातक का कोई भी काम पाय: पूरा नही हो पाता है। इस योग के पभाव से जातक का आिथर क संतुलन िबगड जाता है, िजस कारण आिथर क संकट भी उपिसथत हो जाता है। लेिकन इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी जातक को वयवसाय, नौकरी तथा राजनीित के केता मे बहु त सफलताएं पाप होती है एवं उसे सामािजक पद पितषा भी िमलती है। यिद उपरोक परेशानी महसूस करते है तो िनमनिलिखत उपाय करे। अवशय लाभ िमलेगा। अनुकूलन के उपाय • शुभ मुहूतर मे मुखय दार पर चांदी का सविसतक एवं दोनो ओर धातु से िनिमर त नाग िचपका दे। • शुभ मुहूतर मे सूखे नािरयल के फल को जल मे तीन बार पवािहत करे। • 86 शिनवार का वत करे और राहु ,केतु व शिन के साथ हनुमान की आराधना करे। और हनुमान जी को मंगलवार को चौला चढाये और शिनवार को शी शिनदेव का तैलािभषेक करे • िकसी शुभ मुहूतर मे एकाकी नािरयल अपने ऊपर से सात बार उतारकर सात बुधवार को गंगा या यमुना जी मे पवािहत करे। • सवा महीने जौ के दाने पिकयो को िखलाएं । • शुभ मुहूतर मे सवर तोभदमणडल यंता को पूिजत कर धारण करे। • िनतय पित हनुमान चालीसा पढे और भोजनालय मे बैठकर भोजन करे। हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करे और पांच मंगलवार का वत करते हु ए हनुमान जी को चमेली के तेल मे घुला िसंदरू व बूद ं ी के लडू चढाएं । • काल सपर दोष िनवारण यंता घर मे सथािपत कर उसका पितिदन पूजन करे और शिनवार को कटोरी मे सरसो का तेल लेकर उसमे अपना मुंह देख एक िसकका अपने िसर पर तीन बार घुमाते हु ए तेल मे डाल दे और उस कटोरी को िकसी गरीब आदमी को दान दे दे अथवा पीपल की जड मे चढा दे। • सवा महीने तक जौ के दाने पिकयो को िखलाएं और पतयेक शिनवार को चीिटयो को शककर िमिशत सतााू उनके िबलो पर डाले। • िकसी शुभ मुहूतर मे सूखे नािरयल के फल को बहते जल मे तीन बार पवािहत करे तथा िकसी शुभ मुहूतर मे शिनवार के िदन बहते पानी मे तीन बार कोयला भी पवािहत करे।
5. पद कालसपर योग राहु पंचम व केतु एकादश भाव मे तथा इस बीच सारे गह हो तो पद कालसपर योग बनता है। इसके कारण जातक के िवदाधययन मे कुछ वयवधााान उपिसथत होता है। परंतु कालानतर मे वह वयवधााान समाप हो जाता है। उनहे संतान पाय: िवलंब से पाप होती है, या संतान होने मे आं िशक रप से वयवधान उपिसथत होता है। जातक को पुत संतान की पाय: िचंता बनी रहती है। जातक का सवासथय कभी-कभी असामानय हो जाता है। इस योग के कारण दामपतय जीवन सामानय होते हु ए भी कभी-कभी अिधक तनावपूणर हो जाता है। पिरवार मे जातक को अपयश िमलने का भी भय बना रहता है। जातक के िमतगण सवाथी होते है और वे सब उसका पतन कराने मे सहायक होते है। जातक को तनावगसत जीवन वयतीत करना पडता है। इस योग के पभाव से जातक के गुप शतााु भी होते है। वे सब उसे नुकसान पहु च ं ाते है। उसके लाभ मागर मे भी आं िशक बाधा उतपन होती रहती है एवं िचंता के कारण जातक का जीवन संघषर मय बना रहता है। जातक दारा अिजर त समपिताा को पाय: दस ू रे लोग हडप लेते है। जातक को वयािधयां भी घेर लेती है। इलाज मे अिधााक धन खचर हो जाने के कारण आिथर क संकट उपिसथत हो जाता है। जातक वृधदावसथा को लेकर अिधक िचंितत रहता है एवं कभी-कभी उसके मन मे संनयास गहण करने की भावना भी जागृत हो जाती है। लेिकन इतना सबकुछ होने के बाद भी एक समय ऐसा आता है िक यह जातक आिथर क दिष से बहु त मजबूत होता है, समाज मे मान-सममान िमलता है और कारोबार भी ठीक रहता है यिद यह जातक अपना चाल-चलन ठीक रखे, मधयपान न करे और अपने िामत की समपित को न हडपे तो उपरोक कालसपर पितकूल पभाव लागू नही होते है। अनुकूलन के उपाय शुभ मुहूतर मे मुखय दार पर चांदी का सविसतक एवं दोनो ओर धातु से िमिमर त नाग िचपका दे। शुकल पक के पथम शिनवार से वत पारंभ कर 18 शिनवारो तक वत करे और काला वसा धारण कर 18 या 3 माला राहु के बीज मंता का जाप करे। िफर एक बतर न मे जल दवु ार और कुशा लेकर पीपल की जड मे चढाएं । भोजन मे मीठा चूरमा, मीठी रोटी, समयानुसार रेवडी ितल के बने मीठे पदाथर सेवन करे और यही वसतुएं दान भी करे। रात मे घी का दीपक जलाकर पीपल की जड मे रख दे। नाग पंचमी का वत भी अवशय करे। िनतय पित हनुमान चालीसा का 11 बार पाठ करे और हर शिनवार को लाल कपडे मे आठ मुटी िभंगोया चना व गयारह केले सामने रखकर हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करे और उन केलो को बंदरो को िखला दे और पतयेक मंगलवार को हनुमान जी के मंिदर मे बूद ं ी के लडू का भोग लगाएं और हनुमान जी की पितमा पर चमेली के तेल मे घुला िसंदरू चढाएं और साथ ही शी शिनदेव का तैलािभषेक करे। ऐसा करने से वासुकी काल सपर योग के समसत दोषो की शांित हो जाती है। शावण के महीने मे पितिदन सनानोपरांत 11 माला 'नम: िशवाय' मंता का जप करने के उपरांत िशवजी को बेलपता व गाय का दध ू तथा गंगाजल चढाएं तथा सोमवार का वत करे। 6. महापद कालसपर योग राहु छठे भाव मे और केतु बारहवे भाव मे और इसके बीच सारे गह अविसथत हो तो महापद कालसपर योग बनता है। इस योग मे जातक शतु िवजेता होता है, िवदेशो से वयापार मे लाभ कमाता है लेिकन बाहर जयादा रहने के कारण उसके घर मे शांित का अभाव रहता है। इस योग के जातक को एक ही िचज िमल सकती है धन या सुख। इस योग के कारण जातक यातााा बहु त करता है उसे याताााओं मे सफलता भी िमलती है परनतु कई बार अपनो दारा धोखा खाने के कारण उनके मन मे िनराशा की भावना जागृत हो उठती है एवं वह अपने मन मे शतुता पालकर रखने वाला भी होता है। जातक का चिरता भी बहु त संदेहासपद हो जाता है। उसके धमर की हािन होती है। वह समय-समय पर बुरा सवपनदेखता है। उसकी वृधदावसथा कषपद होती है। इतना सब कुछ होने के बाद भी जातक के जीवन मे एक अचछा समय आता है और वह एक अचछा दलील देने वाला वकील अथवा तथा राजनीित के केता मे सफलता पाने वाला नेता होता है। अनुकूलन के उपाय -
शावणमास मे 30 िदनो तक महादेव का अिभषेक करे। शुकल पक के पथम शिनवार से शिनवार वत आरंभ करना चािहए। यह वत 18 बार करे। काला वसा धारण करके 18 या 3 राहु बीज मंता की माला जपे। तदनतर एक बतर न मे जल, दवु ार और कुश लेकर पीपल की जड मे डाले। भोजन मे मीठा चूरमा, मीठी रोटी समयानुसार रेवडी, भुगगा, ितल के बने मीठे पदाथर सेवन करे और यही दान मे भी दे। रात को घी का दीपक जलाकर पीपल की जड के पास रख दे। इलाहाबाद (पयाग) मे संगम पर नाग-नािगन की िविधवत पूजन कर दध ू के साथ संगम मे पवािहत करे एवं तीथर राज पयाग मे संगम सथान मे तपर ण शाधद भी एक बार अवशय करे। मंगलवार एवं शिनवार को रामचिरतमानस के सुंदरकाणड का 108 बार पाठ शधदापूवरक करे। 7. तकक कालसपर योग केतु लग मे और राहु सपम सथान मे हो तो तकक नामक कालसपर योग बनता है। कालसपर योग की शासााीय पिरभाषा मे इस पकार का अनुिदत योग पिरगिणत नही है। लेिकन वयवहार मे इस पकार के योग का भी संबंिधत जातको पर अशुभ पभाव पडता देखा जाता है। तकक नामक कालसपर योग से पीिडत जातको को पैतृक संपिताा का सुख नही िमल पाता। या तो उसे पैतृक संपिताा िमलती ही नही और िमलती है तो वह उसे िकसी अनय को दान दे देता है अथवा बबारद कर देता है। ऐसे जातक पेम पसंग मे भी असफल होते देखे जाते है। गुप पसंगो मे भी उनहे धोखा खाना पडता है। वैवािहक जीवन सामानय रहते हु ए भी कभी-कभी संबंध इतना तनावपूणर हो जाता है िक अलगाव की नौबत आ जाती है। जातक को अपने घर के अनय सदसयो की भी यथेष सहानुभूित नही िमल पाती। साझेदारी मे उसे नुकसान होता है तथा समय-समय पर उसे शतााु षडयंतााो का िशकार बनना पडता है। जुए, सटे व लाटरी की पवृिताा उस पर हावी रहती है िजससे वह बबारदी के कगार पर पहु च ं जाता है। संतानहीनता अथवा संतान से िमलने वाली पीडा उसे िनरंतर कलेश देती रहती है। उसे गुपरोग की पीडा भी झेलनी पडती है। िकसी को िदया हु आ धान भी उसे समय पर वापस नही िमलता। यिद यह जातक अपने जीवन मे एक बात करे िक अपना भलाई न सोच कर ओरो का भी िहत सोचना शुर कर दे साथ ही अपने मानसममान के दस ू रो को नीचा िदखाना छोड दे तो उपरोक समसयाएं नही आती। अनुकूलन के उपाय कालसपर दोष िनवारण यंता घर मे सथािपत करके, इसका िनयिमत पूजन करे। सवा महीने जौ के दाने पिकयो को िखलााएं । देवदार, सरसो तथा लोहवान - इन तीनो को उबालकर एक बार सनान करे। शुभ मुहूतर मे बहते पानी मे मसूर की दाल सात बार पवािहत करे और उसके बाद लगातार पांच मंगलवार को वत रखते हु ए हनुमान जी की पितमा मे चमेली मे घुला िसंदरू अिपर त करे और बूद ं ी के लडू का भोग लगाकर पसाद िवतिरत करे। अंितम मंगलवार को सवा पांव िसंदरू सवा हाथ लाल वसा और सवा िकलो बताशा तथा बूंदी के लडू का भोग लगाकर पसाद बांटे। 8. ककोटक कालसपर योग केतु दस ू रे सथान मे और राहु अषम सथान मे ककोटक नाम कालसपर योग बनता है। जैसा िक हम इस बात को पहले भी सपष कर चुके है, ऐसे जातको के भागयोदय मे इस योग की वजह से कुछ रकावटे अवशय आती है। नौकरी िमलने व पदोनित होने मे भी किठनाइयां आती है। कभी-कभी तो उनहे बडे ओहदे से छोटे ओहदे पर काम करनेका भी दंड भुगतना पडता है। पैतृक संपिताा से भी ऐसे जातको को मनोनुकूल लाभ नही िमल पाता। वयापार मे भी समय-समय पर कित होती रहती है। कोई भी काम बिढया से चल नही पाता। किठन पिरशम के बावजूद उनहे पूरा लाभ नही िमलता। िमतो से धोखा
िमलता है तथा शारीिरक रोग व मानिसक परेशािनयो से वयिथत जातक को अपने कुटु ंब व िरशतेदारो के बीच भी सममान नही िमलता। िचडिचडा सवभाव व मुंहफट बोली से उसे कई झगडो मे फंसना पडता है। उसका उधााार िदया पैसा भी डू ब जाता है। शतााु षडयंता व अकाल मृतयु का जातक को बराबर भय बना रहता है। उक परेशािनयो से बचने के िलए जातक िनमन उपाय कर सकते है। अनुकूलन के उपाय हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करे और पांच मंगलवार का वत करते हु ए हनुमान जी को चमेली के तेल मे घुला िसंदरू व बूंदी के लडू चढाएं । काल सपर दोष िनवारण यंता घर मे सथािपत कर उसका पितिदन पूजन करे और शिनवार को कटोरी मे सरसो का तेल लेकर उसमे अपना मुंह देख एक िसकका अपने िसर पर तीन बार घुमाते हु ए तेल मे डाल दे और उस कटोरी को िकसी गरीब आदमी को दान दे दे अथवा पीपल की जड मे चढा दे। सवा महीने तक जौ के दाने पिकयो को िखलाएं और पतयेक शिनवार को चीिटयो को शककर िमिशत सतााू उनके िबलो पर डाले। अपने सोने वाले कमरे मे लाल रंग के पदे, चादर व तिकयो का पयोग करे। िकसी शुभ मुहूतर मे सूखे नािरयल के फल को बहते जल मे तीन बार पवािहत करे तथा िकसी शुभ मुहूतर मे शिनवार के िदन बहते पानी मे तीन बार कोयला भी पवािहत करे। 9. शंखचूड कालसपर योग केतु तीसरे सथान मे व राहु नवम सथान मे शंखचूड नामक कालसप योग बनता है। इस योग से पीिडत जातको का भागयोदय होने मे अनेक पकार की अडचने आती रहती है। वयावसाियक पगित, नौकरी मे पोनित तथा पढाई-िलखाई मे वांिछत सफलता िमलने मे जातको को कई पकार के िवघनो का सामना करना पडता है। इसके पीछे कारण वह सवयं होता है कयोिक वह अपनो का भी िहससा िछनना चाहता है। अपने जीवन मे धमर से िखलवाड करता है। इसके साथ ही उसका अपना अतयािधक आतमिवशवास के कारण यह सारी समसया उसे झेलनी पडती है। अिधक सोच के कारण शारीिरक वयािधयां भी उसका पीछा नही छोडती। इन सब कारणो के कारण सरकारी महकमो व मुकदमेबाजी मे भी उसका धन खचर होता रहता है। उसे िपता का सुख तो बहु त कम िमलता ही है, वह निनहाल व बहनोइयो से भी छला जाता है। उसके िमत भी धोखाबाजी करने से बाज नही आते। उसका वैवािहक जीवन आपसी वैमनसयता की भेट चढ जाता है। उसे हर बात के िलए किठन संघषर करना पडता है। उसे समाज मे यथेष मान-सममान भी नही िमलता। उक परेशािनयो से बचने के िलए उसे अपना को अपनाना पडेगा, अपनो से पयार करना होगा, धमर की राह पर चलना होगा एवं मुंह मे राम बगल मे छूरी की भावना को तयागना हााोग तो जीवन मे बहु त कम कठीनाइयो का सामना करना पडेगा। तब भी किठनाईयां आित है तो िनमनिलिखत उपाय बडे लाभपद िसधद होते है। अनुकूलन के उपाय इस काल सपर योग की परेशािनयो से बचने के िलए संबंिधाात जातक को िकसी महीने के पहले शिनवार से शिनवार का वत इस योग की शांित का संकलप लेकर पारंभ करना चािहए और उसे लगातार 86 शिनवारो का वत रखना चािहए। वत के दौरान जातक काला वसा धारण करे शी शिनदेव का तैलािभषेक करे, राहु बीज मंता की तीन माला जाप करे। जाप के उपरांत एक बतर न मे जल, दवु ार और कुश लेकर पीपल की जड मे डाले। भोजन मे मीठा चूरमा, मीठी रोटी, रेवडी, ितलकूट आिद मीठे पदाथो ं का उपयोग करे। उपयोग के पहले इनही वसतुओं का दान भी करे तथा रात मे घी का दीपक जलाकर पीपल की जड मे रख दे।
महामृतयुंजय कवच का िनतय पाठ करे और शावण महीने के हर सोमवार का वत रखते हु ए िशव का रदािभषेक करे। चांदी या अषधातु का नाग बनवाकर उसकी अंगूठी हाथ की मधयमा उंगली मे धारण करे। िकसी शुभ मुहुतर मेअपने मकान के मुखय दरवाजे पर चांदी का सविसतक एवं दोनो ओर धातु से िनिमर त नाग िचपका दे। 10. घातक कालसपर योग केतु चतुथर तथा राहु दशम सथान मे हो तो घातक कालसपर योग बनाते है। इस योग मे उतपन जातक यिद माँ की सेवा करे तो उतम घर व सुख की पािप होता है। जातक हमेशा जीवन पयर नत सुख के िलए पयतनशील रहता है उसके पास िकतना ही सुख आ जाये उसका जी नही भरता है। उसे िपता का भी िवछोह झेलना पडता है। वैवािहक जीवन सुखमय नही रहता। वयवसाय के केता मे उसे अपतयािशत समसयाओं का मुकाबला करना पडता है। परनतु वयवसाय व धन की कोई कमी नही होती है। नौकरी पेशा वाले जातको को ससपेड, िडसचाजर या िडमोशन के खतरो से रबर होना पडता है। साझेदारी के काम मे भी मनमुटाव व घाटा उसे कलेश पहु च ं ाते रहते है। सरकारी पदािधकारी भी उससे खुश नही रहते और िमत भी धोखा देते रहते है। यिद यह जातक िरशवतखोरी व दो नमबर के काम से बाहर आ जाएं तो जीवन मे िकसी चीज की कमी नही रहती है। सामािजक पितषा उसे जरर िमलती है साथ ही राजनैितक केता मे बहु त सफलता पाप करता है। उक परेशािनयो से बचने के िलए जातक िनमनिलिखत उपाय कर लाभ उठा सकते है। अनुकूलन के उपाय िनतय पित हनुमान चालीसा का पाठ करे व पतयेक मंगलवार का वत रखे और हनुमान जी को चमेली के तेल मे िसंदरू घुलाकर चढाएं तथा बूंदी के लडू का भोग लगाएं । एक वषर तक गणपित अथवर शीषर का िनतय पाठ करे। शिनवार का वत रखे, शी शिनदेव का तैलािभषेक व पूजन करे और लहसुिनयां, सुवणर , लोहा, ितल, सपधानय, तेल, काला वसा, िछलके समेत सूखा नािरयल, कंबल आिद का समय-समय पर दान करे सोमवार के िदन वत रखे, भगवान िशव के मंिदर मे चांदी के नाग की पूजा कर अपने िपतरो का समरण करे और उस नाग को बहते जल मे शधदापूवरक िवसिजर त कर दे। 11. िवषधर कालसपर योग केतु पंचम और राहु गयारहवे भाव मे हो तो िवषधर कालसपर योग बनाते है। जातक को जानाजर न करने मे आं िशक वयवधान उपिसथत होता है। उचच िशका पाप करने मे थोडी बहु त बाधा आती है एवं समरण शिकत का पाय: हास होता है। जातक को नाना-नानी, दादा-दादी से लाभ की संभावना होते हु ए भी आं िशक नुकसान उठाना पडता है। चाचा, चचेरे भाइयो से कभी-कभी मतानतर या झगडा- झंझट भी हो जाता है। बडे भाई से िववाद होने की पबल संभावना रहती है। इस योग के कारण जातक अपने जनम सथान से बहु त दरू िनवास करता है या िफर एक सथान से दस ू रे सथान पर भमण करता रहता है। लेिकन कालानतर मे जातक के जीवन मे सथाियतव भी आता है। लाभ मागर मे थोडा बहु त वयवधान उपिसथत होता रहता है। वह वयिक कभी-कभी बहु त िचंतातुर हो जाता है। धन समपिताा को लेकर कभी बदनामी की िसथित भी पैदा हो जाती है या कुछ संघषर की िसथित बनी रहती है। उसे सवर ता लाभ िदखलाई देता है पर लाभ िमलता नही। संतान पक से थोडी-बहु त परेशानी घेरे रहती है। जातक को कई पकार की शारीिरक वयािधयो से भी कष उठाना पडता है। उसके जीवन का अंत पाय: रहसयमय ढंग से होता है। उपरोक परेशानी होने पर िनमनिलिखत उपाय करे। अनुकूलन के उपाय -
शावण मास मे 30 िदनो तक महादेव का अिभषेक करे। सोमवार को िशव मंिदर मे चांदी के नाग की पूजा करे, िपतरो का समरण करे तथा शधदापूवरक बहते पानी या समुद मे नागदेवता का िवसजर न करे। सवा महीने देवदार, सरसो तथा लोहवान - इन तीनो को जल मे उबालकर उस जल से सनान करे। पतयेक सोमवार को दही से भगवान शंकर पर - ओउम् हर हर महादेव' कहते हु ए अिभषेक करे। ऐसा हर रोज शावण के मिहने मे करे। सवा महीने जौ के दाने पिकयो को िखलाएं । 12. शेषनाग कालसपर योग केतु छठे और राहु बारहवे भाव मे हो तथा इसके बीच सारे गह आ जाये तो शेषनाग कालसपर योग बनता है। शासााोक पिरभाषा के दायरे मे यह योग पिरगिणत नही है िकंतु वयवहार मे लोग इस योग संबंधी बाधाओं से पीिडत अवशय देखे जाते है। इस योग से पीिडत जातको की मनोकामनाएं हमेशा िवलंब से ही पूरी होती है। ऐसे जातको को अपनी रोजी-रोटी कमाने के िलए अपने जनमसथान से दरू जाना पडता है और शतु षडयंतो से उसे हमेशा वाद-िववाद व मुकदमे बाजी मे फंसे रहना पडता है। उनके िसर पर बदनामी की कटार हमेशा लटकी रहती है। शारीिरक व मानिसक वयािधयो से अकसर उसे वयिथत होना पडता है और मानिसक उिदगता की वजह से वह ऐसी अनाप-शनाप हरकते करता है िक लोग उसे आशचयर की दिष से देखने लगते है। लोगो की नजर मे उसका जीवन बहु त रहसयमय बना रहता है। उसके काम करने का ढंग भी िनराला होताहै। वह खचर भी आमदनी से अिधक िकया करता है। फलसवरप वह हमेशा लोगो का देनदार बना रहता है और कजर उतारने के िलए उसे जी तोड मेहनत करनी पडती है। उसके जीवन मे एक बार अचछा समय भी आता है जब उसे समाज मे पितिषत सथान िमलता है और मरणोपरांत उसे िवशेष खयाित पाप होती है। इस योग की बाधाओं से ताण पाने के िलए यिद िनमनिलिखत उपाय िकये जाये तो जातक को बहु त लाभ िमलता है। अनुकूलन के उपाय िकसी शुभ मुहूतर मे ओउम् नम: िशवाय' की 11 माला जाप करने के उपरांत िशविलंग का गाय केदध ू से अिभषेक करे और िशव को िपय बेलपता आिद सामिगयां शधदापूवरक अिपर त करे। साथ ही तांबे का बना सपर िविधवत पूजन के उपरांत िशविलंग पर समिपर त करे। हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करे और मंगलवार के िदन हनुमान जी की पितमा पर लाल वसा सिहत िसंदरू , चमेली का तेल व बताशा चढाएं । िकसी शुभ मुहूतर मे मसूर की दाल तीन बार गरीबो को दान करे। सवा महीने जौ के दाने पिकयो को िखलाने के बाद ही कोई काम पारंभ करे। काल सपर दोष िनवारण यंता घर मे सथािपत करके उसकी िनतय पित पूजा करे और भोजनालय मे ही बैठकर भोजन करे अनय कमरो मे नही। िकसी शुभ मुहूतर मे नागपाश यंता अिभमंितत कर धारण करे और शयन कक मे बेडशीट व पदे लाल रंग के पयोग मे लाये। शुभ मुहूतर मे मुखय दार पर अषधातु या चांदी का सविसतक लगाएं और उसके दोनो ओर धातु िनिमर त नाग
************************************************************************** जयोितष मे राहु और केतु को छाया गह का नाम िदया गया है। राहु शंकाओं का कारक है और केतु उस शंका को पैदा करने वाला सथान। जब शंका को पैदा करने वाले सथान,और शंका के एक तरफ़ ही सब बोलने वाले हो और समाधान करने वाले हो तो फ़ैसला एक तरफ़ा ही माना जायेगा,अगर शंका के समाधान के िलये दस ू री तरफ़ से कोई अपना बचाव या फ़ैसले के पित टीका िटपपणी करे,तो अगर एक तरफ़ा फ़ैसला िकसी अिहत के िलये िकया जा रहा है,तो उसके अनदर समाधान का कारक िमल जाता है,और िकसी भी पकार का अिहत होने से बच जाता है। जीवन शंकाओं के िनवारण के पित समिपर त है,िकसी को शरीर के पित शंका है,िकसी को धन और कुटु मब के पित शंका है,िकसी को अपना बल और पदशर न िदखाने के पित शंका है,िकसी को अपने िनवास सथान और लगातार मन ही शंकाओं से हमेशा िघरा है,िकसी को अपनी िशका और संतान के पित शंका है,िकसी को अपने कजार दशु मनी और बीमारी के पित शंका है,िकसी को अपने जीवन साथी और जीवन के अनदर की जाने वाली जीवन के पित लडाइयो के पित शंका है,िकसी को अपने शरीर की समािप और अपमान के साथ जानजोिखम के पित ही शंका है,िकसी को अपने जाित कुल धमर और भागय के पित ही शंकाये है,िकसी को अपने कायर और जीवन यापन के िलये कया करना चािहये उसके पित ही शंकाये है,िकसी को अपने िमतो अपने बडे भाइयो और लगातार लाभ के पित ही शंकाये है,िकसी को अपने दारा आने जाने खचार करने और अंत समय के पित शंकाये हु आ करती है। अकसर कोई शंका जब की जाती है तो उस शंका के समाधान के िलये कोई न कोई हल अपने आप अपने ही िदमाग से िनकल आता है,अपने िदमाग से नही तो कोई न कोई आकर उस शंका का समाधान बता जाता है,लेिकन राहु जो शंका का नाम है और केतु जो शंका को पैदा करने का कारक है,के एक तरफ़ बहु त सभी गह हो और दस ू री तरफ़ कोई भी गह नही हो तो शंका का समाधान एक तरफ़ा ही हो जाता है,और अगर वह समाधान िकसी कारण से अिहत देने वाला है तो उसे कोई बदल नही पाता है,जातक का सवभाव एक तरफ़ा होकर वह जो भी अचछा या बुरा करने जा रहा है करता ही चला जाता है,जातक के मन के अनदर जो भी शंका पैदा होती है वह एक तरफ़ा समाधान की बजह से केवल एक ही भावना को पैदा करने का आदी हो जाता है,जब कोई शंका का समाधान और उस पर िटपपणी करने का कारक नही होता है तो जातक का सवभाव िनरंकुश हो जाता है,इस कारण से जातक के जीवन मे जो भी दख ु का कारण है वह िचरसथाई हो जाता है,इस िचरसथाई होने का कारण राहु और केतु के बाद कोई गह नही होने से कंु डली देख कर पता िकया जाता है,यही कालसपर दोष माना जाता है,यह बारह पकार का होता है।
िवषणु अथवा अननत इस योग का दषु पभाव सवासथय आकृित रंग तवचा सुख सवभाव धन बालो पर पडता है,इसके साथ छोटे भाई बिहनो छोटी याता मे दािहने कान पर कालरबोन पर कंधे पर सनायु मंडल पर, पडौसी के साथ समबनधो पर अपने को पदिशर त करने पर सनतान भाव पर बुिद और िशका पर परामशर करने पर पेट के रोगो पर हाथो पर िकसी पकार की योजना बनाने पर िववेक पर शादी समबनध पर वसतुओं के अचानक गुम होजाने,रज और वीयर वाले कारणो पर याददासत पर िकसी पकार की साझेदारी और अनुबनध वाले कामो पर िपता और िपता के नाम पर िवदेश याता पर उचच िशका पर धमर और उपासना पर तीथर याता पर पौत आिद पर पडता है.
अजै क पाद अथवा कु िलक इसका पभाव धन,पिरवार दािहनी आं ख नाखूनो खरीदने बेचने के कामो मे आभूषणो मे वाणी मे भोजन के रपो मे कपडो के पिहनने मे आय के साधनो मे जीभ की बीमािरयो मे नाक दांत गाल की बीमािरयो मे धन के जमा करने मे िमतता करने मे नया काम करने मे भय होने शतुता करवाने कजार करवाने बैक आिद की नौकरी करने कानूनी िशका को पाप करवाने नौकरी करने नौकर रखने अकसमात चोट लगने कमर की चोटो या बीमािरयो मे चाचा या मामा पिरवार के पित पेशाब की बीमािरयो मे वयवसाय की जानकारी मे राजय के दारा िमलने वाली सहायताओं मे सांस की बीमािरयो मे पीठ की हडी मे पुरसकार िमलने मे अिधकार को पाप करने मे िकसी भी पकार की सफ़लता को पाप करने मे अपना असर देता है.
अिहबुर नध अथवा वासुि क राहु तीसरे भाव मे और केतु नवे भाव मे होता है तो इस कालसपर योग की उतपित होती है। गहो का सथान राहु केतु के एक तरफ़ कंु डली मे होता है। यह योग िकसी भी पकार के बल को या तो नष करता है अथवा उतेिजत िदमाग की वजह से िकतने ही अनथर कर देता है।
कपाली या शं ख पाल इस दोष मे राहु चौथे भाव मे और केतु दसवे भाव मे होता है,यह माता मन और मकान के िलये दख ु दायी होता है,जातक को मानिसक रप से भटकाव देता है।
हर या पद इस योग मे राहु पंचम मे और केतु गयारहवे भाव मे होता है,बाकी के गह राहु केतु की रेखा से एक तरफ़ होते है इस योग के कारण जातक को संतान या तो होती नही अगर होती है तो अलप समय मे नष होजाती है।
बहु रप या महापद इस योग मे राहु छठे भाव मे और केतु बारहवे भाव मे होता है जातक अपने नाम और अपनी बात के िलये कोई भी योगय अथवा अयोगय कायर कर सकता है,जातक की पतनी या पित बेकार की िचनताओं से गसत होता है,साथ जातक के पिरवार मे अचानक मुसीबते या तो आजाती है या खतम हो जाती है,धन की बचत को झूठे लोग चोर या बीमारी या कजार अचानक खतम करने के िलये इस दोष को मुखय माना जाता है।
तयमबक या तकक यह योग जीवन के िलये सबसे घातक कालसपर योग होता है,तयमबक का मतलब तय+अमब+क=तीन देिवयो (सरसवती,काली,लकमी) का रप कालरप हो जाना। इस योग के कारण जीवन को समाप करने के िलये और जीवन मे िकसी भी केत की उनित शादी के बाद अचानक खतम होती चली जाती है,जातक िसर धुनने लगता है,उसके अनदर चिरतहीनता से बुिद का िवनाश,अधमर कायो ं से और धािमर क सथानो से अरिच के कारण लकमी का िवनाश,तथा हमेशा दस ू रो के पित बुरा सोचने के कारण संकट मे सहायता नही िमलना आिद पाया जाता है।
अपारािजत या करकट यह योग भी शादी के बाद ही अचानक धन की हािन जीवन साथी को तामसी कारणो मे ले जाने और अचानक मौत देने के िलये जाना जाता है,इस योग के कारण जातक जो भी काम करता है वह शमशान की राख की तरह से फ़ल देते है,जातक का धयान शमशान सेवा और मुतयु के बाद के धन को पाप करने मे लगता है,अचानक जातक कोई भी फ़ैसला जीवन के पित ले लेता है,यहां तक इस पकार के ही जातक अचानक छत से छलांग लगाते या अचानक गोली मारने से मरने से मृतयु को पाप होते है,इसके अलावा जातक को योन समबनधी बीमािरयां होने के कारण तथा उन रोगो के कारण जातक का सवभाव िचढ िचढा हो जाता है,और जातक को हमेशा उतेजना का कोपभाजन बनना पडता है,संतान के मामले मे और जीवन साथी की रगणता के कारण जातक को िजनदगी मे दख ु ही िमलते रहते है।
वृष ाकिप या शं ख चूड इस योग मे राहु नवे भाव मे और केतु तीसरे भाव मे तथा सभी अनय गह राहु केतु के एक तरफ़ होते है,इस योग के अनदर जातक धमर मे झाडू लगाने वाला होता है,सामािजक मयारदा उसके िलये बेकार होती है,जातक का सवभाव मानिसक आधार पर लमबा सोचने मे होता है,लोगो की सहायता करने और बडे भाई बिहनो के िलये हािनकारक माना जाता है,जातक की पतनी को या पित को उसके शरीर सिहत भौितक िजनदगी को समभालना पडता है,जातक को जयोितष और पराशिकयो के कारको पर बहस करने की आदत होती है,जातक के घर मे या तो लडाइयां हु आ करती है अथवा जातक को अचानक जनम सथान छोड कर िवदेश मे जाकर िनवास करना पडता है।
शमभु या घातक इस योग मे राहु दसवे भाव मे और केतु चौथे भाव मे होते है अनय गह राहु केतु के एक तरफ़ होते है,इस योग के कारण जातक को या तो दस ू रो के िलये जीना पडता है अथवा वह दस ू रो को कुछ भी जीवन मे दे नही पाता है,जातक का धयान उनही कारको की तरफ़ होता है जो िवदेश से धन पदान करवाते हो अथवा धन से समबनध रखते हो जातक को िकसी भी आतमीय समबनध से कोई मतलब नही होता है। या तो वह िशव की तरह से शमशान मे िनवास करता है,या उसे घर पिरवार या समाज से कोई लेना देना नही रहता है,जातक को शमशानी शिकयो पर िवशवास होता है और वह इन शिकयो को दस ू रो पर पयोग भी करता है।
कपदी या िवषधर इस योग मे गयारहवे भाव मे राहु और पंचम सथान मे केतु होता है,इसकी यह पिहचान भी होती है िक जातक के कोई बडा भाई या बिहन होकर खतम हो गयी होती है,जातक के िपता को तामसी कारको को पयोग करने की आदत होती है जातक की माँ अचानक िकसी हादसे मे खतम होती है,जातक की पतनी या पित पिरवार से कोई लगाव नही रखते है,अिधकतर मामलो मे जातक के संतान असपताल और आपरेशन के बाद ही होती है,जातक की संतान उसकी शादी के बाद समबनध खतम कर देती है,जातक का पालन पोषण और पािरवािरक पभाव दस ू रो के अधीन रहता है।
रै व त या शे ष नाग इस योग मे लगन से बारहवे भाव मे राहु और छठे भाव मे केतु होता है,जातक उपरतव वाली बाधाओं से पीिडत रहता है,जातक को बचपन मे नजर दोष से भी शारीिरक और बौिदक हािन होती है,जातक का िपता झगडालू और माता दस ू रे धमो ं पर िवशवास करने वाली होती है,जातक को अकेले रहने और अकेले मे सोचने की आदत होती है,जातक कभी कभी महसूस करता है िक उसके िसर पर कोई भारी बजन है और जातक इस कारण से कभी कभी इस पकार की हरकते करने लगता है मानो उसके ऊपर िकसी आतमा का साया हो,जातक के अनदर सोचने के अलावा काम करने की आदत कम होती है,कभी जातक भूत की तरह से काम करता है और कभी आलसी होकर लमबे समय तक लेटने का आदी होता है,जातक का सवभाव शादी के बाद दस ू रो से झगडा करने और घर के पिरवार के सदसयो से िवपरीत चलने का होता है,जातक की होने वाली सनतान अपने बचपन मे दस ू रो के भरोसे पलती है। काल का अथर समय औरसपर का मतलब गयारह रदो मे एक माना जाता है,िविभन लोगो ने अपने अपने िववेक और बुिद से कालसपर योगो की वयाखया की है,लेिकन भूतडामर तंत के अनुसार कालसपर का पूरा बयौरा भगवान रद (िशव) के पित ही माना गया है,इस पकार का योग ही भगवान िशव के दारा अिभशािपत माना जाता है,िजस पाणी को जो सजा देनी होती है उसे उसी समय मे भूलोक मे उतारा जाता है,और आतमा को जीवन-मरण,यश-अपयश,लाभ-हािन,सुख-दख ु ,आिद के दारा उसका फ़ल िदया जाता है। इस भोगातमक जीवन मे भी अगर पाणी िकसी पकार के घमंड मे अगर िकसी पाणी िवशेष का मनसा वाचा कमर णा से अिहत करने की कोिशश करता है,अथवा पकृित की पालना मे अपना दखल अपने घमंड के कारण करता है तो उसे दबु ारा से भूलोक मे आकर दख ु ी होना पडता है। जो वयिक धमर को बेचते है,धमर का उपहास उडाते है,पकृित को अपनी बपौती समझते है,वेदो का अपमान करते है,जो आिद युग से चला आ रहा है उसे भूल से अपने दारा सृिजत मानकर घमंड कर बैठते है,और भौितक कारणो का सहारा लेकर उस पर अपना नाम चलाने की कोिशश करते है वे
इस राहु दारा समय आने पर भयंकर रप से पीिडत िकये जाते है,जब उनको पीडा भुगतनी पडती है तो वे असहाय से होकर उस घडी को कोशते है जब उनहोने जो उनका है ही नही को अपना माना और उस अपना मानने के कारण इस िनशछल आतमा को पितकार के रप मे जलाया। कंु डली मे लगन को नारायण और अलावा भावो को गयारह रदो के रप मे जाना जाता है,उनके नाम इस पकार से है -अजैकपात, अिहबुरनध, कपाली, हर, बहु रप, तयमबक, अपारािजत, वृषाकिप, शमभु, कपदी और रैवत । िशव संहारक है,बहा उतपित और िवषणु पालक के रप मे जाने जाते है। कंु डली के भावो मे पहला िवषणु का पांचवां बहा का और नवां िशव का,उसी पकार से दस ू रा अजैकपाद,छठा तयमबक का और दसवां रैवत का माना जाता है,तीसरा अिहबुरनध का सातवां अपारािजत और गयारहवां वृषाकिप का माना जाता है,चौथा शमभु आठवां कपाली और बारहवां भाव कपदी का माना जाता है,इनही नामो के अनुसार कालसपर दोषो का वगीकरण िकया गया है।